आँख से छलके हुए आंसू से
भीगा-मै था
उस झील की गहराई में कुछ
दूर तक उतरा ही था
जल परी -ख्वाब के महलों में
रसातल जाऊं
जम गए बूँद -बिंदु-झील
बस डूबा जाऊं
पानी पत्थर भी जम के हो जाते
चाहता रह गया -
दुनिया को कैसे बतलाऊँ !!
शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी १८.७.११ - ८.१० -मध्याह्न
Dadi Maa sapne naa mujhko sach ki tu taveej bandha de..hansti rah tu Dadi Amma aanchal sir par mere daale ..join hands to improve quality n gd work
6 comments:
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई
प्रिय सुनील कुमार जी अभिवादन और हार्दिक अभिनन्दन आप का रस रंग -भ्रमर का में -
बेवफाई आप को भायी-और आप का समर्थन मिला -
आभार
शुक्ल भ्रमर ५
वाह! क्या बात है!अद्भुत सुन्दर! दिल को छू गई!
प्रिय बबली जी हार्दिक अभिवादन -आँख से छलके हुए आंसू -रचना मन को भायी सुन हर्ष हुआ
प्रोत्साहन के लिए आभार
शुक्ल भ्रमर ५
सुंदर, अति सुंदर।
आदरणीय मनोज जी हार्दिक अभिवादन -आँख से छलके हुए आंसू आप के मन को छू सके -सुन हर्ष हुआ प्रोत्साहन के लिए आभार
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