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Thursday, February 24, 2011

" भ्रष्टाचार" एक अजगर है -Bhrashtachar ek Ajgar hai -shuklabhramar-Kavita -Hindi poems

" भ्रष्टाचार" एक अजगर है

लीलने को बड़ा मुह,
भोली आँखें
बड़ा-समुद्र  सा पेट
अपने चरितार्थ  को बल देते-
की अजगर करे न चाकरी -
फिर भी मोटा होए..
दिन भर जो जंगल फिरे -
हाथ -पैर मारते -
गरीब-मेहनतकश
पसीना  बहाते
 -दो रोटियों के लिए .
लकड़ियों का गट्ठर जुटाते
उनको मुह फाड़ -चट कर जाता
हमने ही पाल रखा है इसे
सदियों से चारा डालते गए
जनसँख्या अब बढ़ रही -
बाजार गर्म -बड़े-बड़े मार्केट
स्टाल -बिक़े जा रहे-
-प्रदर्शनियां -मंत्री से विज्ञानी-ज्ञानी
सब स्वागत समारोह में भाग लेते
"पौधा"  लगाते  सींच जाते
इस अनमोल बूटे  को -
आँगन में -
'रौंदते' हुए तुलसी को -बेला को
रामचरितमानस -राम के आदर्श को
नियम -कानून को
धज्जियाँ उड़ाते लोग
अजगर का पेट भरते हैं
सरे  आम  भीड़ में - महफ़िल में
और उधर "वो" देते हैं मुझे-
 निमंत्रण
मुझ सा बन जाओ

मेरी कोठी में आओ
मत पछताओ……
"कंकाल" मत बनो
बेटी कुवांरी बैठी - बेटा धूल में पढता
कच्ची दीवाल गिर रही
दवा के पैसे नहीं अम्मा-बाबू के
भाई बेरोजगार- लाचार-
 जुए "ड्रग्स" का शिकार
भ्रष्टाचार नहीं -ईमानदारी- महंगाई -
तेरी दुश्मन है-
ये बड़ा अजगर है
जो खाए जा रही तुझको- सबको
और उनके "निमंत्रण -पत्र" को
पढता -रोता-फाड़ -फेंकता
उनके चेहरे पर -लौट पड़ा-
पैदल ही - एक पीड़ा लिए
गुमसुम…..
अपने प्यारे से गाँव में
बूढी माँ की गोदी में सर रख
पसर गया -सोचते
काश ! हमारी नींद खुलती
गाँधी और कल्कि हम खुद बन जाते
ले लेते " मशाल"
अजगर विलुप्त हो जाता
और फिर " गरीब" की जान बच जाती.

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२.३० पूर्वाह्न
२३.२.११ जल पी बी  




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