-कमल
खिला खिला जाये >>>>>
मेरा किशोर मन
‘पिजरे ’ से मुक्त मन
हरियाली झरनों में
फूलों व् कलियों में
खेतों व् बगियों में
प्यारी सी गलियों में
सागर की लहरों में
नदियों व् झीलों में
ढूंढता फिरे -कोई -
बुलबुल व् हंसिनी
कोयल व् मोरनी
प्यारी सी संगिनी
मोती चुगे ये मन ..
“हंस ’ बना !
“गोरी ” की पायल -
की थिरकन सुने
-तो मन -
गाने को गीत ,
व्यग्र –आकुल -
हुआ ये मन ..
पीपल के पत्तों
सा शोर मचाये ..
‘आम ’ सा बौराए ..
आई “बसंती ”-
ने -मन ललचाये
ये !
तड़फडाये ..
पंख फड़फडाये ..
उड़ा चला जाये >>>>
‘चंदा ’ को देख मन
हहर –हहर जाये .
सुरेंद्रशुक्ला ”भ्रमर ”
७ .३० पूर्वाह्न
१५ .२ .११ जल ( पी. बी. )
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