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Thursday, February 24, 2011

" कर्ज -व्याज" तो हनुमान की पूंछ है -KARJ-VYAJ TO HANUMAN KI POONCHH -SHUKLABHRAMAR-KAVITA -HINDI POEMS

" कर्ज -व्याज" तो हनुमान की पूंछ है

'उसकी' कचर - कचर बातों से तंग
मै तिलमिला उठता
सुबह -सुबह दिनचर्या
सुना देते – ‘फरमान
आज चलना है यहाँ -
वहां- ये करना-वो करना
चूर कर देते -मेरे सपने
मेरे अरमान !
हांक देते फिर
दिन भर थका देते
चक्कर लगाता - मै दिन भर
सोचता रहता 
कब होगा -'वो'  कर्ज पूरा 
मेरे बाप-दादों   का 
ये इसका “व्याज -
हनुमान की पूँछ हो गयी है 
आदर करता उसका 
मै “भीष्म –प्रतिज्ञा लिए 
कर्ण सा डटा था  
मुक्त होने को -
धोने को दाग .
अथक परिश्रम -
चरमरायी हड्डी -
घर आता  तो -बंध जाता-
माया मिठास में
लोग पानी पिला देते
चारा डाल- ठोंक देते हंथेली से पीठ

शुरू हो जाते फिर -
मुझे गोल-गोल हांक देते-
"गाँव" मेरा ब्रह्माण्ड था
मेरा- मेरे बाप दादा की -
अनमोल दुनिया !
रश्म-रिवाज -प्रथा-सम्मान-
से मै सजा था अन्दर तक 
'अथाह' ताकत है मुझमे
कभी -कभी भांप लेता-
आँखें बंद कर -
पिजड़े में बंद-शेर सा
गुर्रा उठता -बेबस -
मजबूर-लाचार !
मन तो कहता -पिजड़े को तोड़
"इतिहास" रच दूं -
मुक्त हो जाऊं -" मालिक" से
"बंधन" -"बंधुआ" हालात से
उछाल दूं -पटखनी दूं इनको
चारों खाने चित्त  ये
मुझसे सोचें - चक्कर काटे -
उनका दिमाग -"ये"-
पर फिर वही
प्रथा-परंपरा 
मेरे -प्यारे बाप -दादा की-
याद आती -मेरी संस्कृति 
"मेरा नाम मत डुबाना "
मै चक्कर काटता -
"कोल्हू " में
खाने को पा जाता
चबाता- पगुराता 
शांत-चलता 
चक्कर काटते 
ख्यालों    में   ही 
थोड़ा    सा   सो जाता .

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२४.०२.२०११
जल (पी.बी.)




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