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Monday, June 8, 2015

गाल गुलाब छिटकती लाली


गाल गुलाब छिटकती लाली
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जुल्फ झटक मौका कुछ देती
अँखियाँ भरे निहार सकूँ
कारी बदरी फिर ढंक लेती
छुप-छुप जी भर प्यार करूँ
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इन्द्रधनुष सतरंगी सज-धज
त्रिभुवन मोहे अजब मोहिनी
कनक समान सजे हर रज कण
किरण गात तव अजब फूटती
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गहरी झील नैन भव-सागर
उतराये डूबे जन मानस
ढाई आखर प्रेम की गागर
अमृत सम पीता बस चातक
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गाल गुलाब छिटकती लाली
होंठ अप्सरा इंद्र की प्याली
थिरक रिझा मतवारी मोरनी
लूट चली दिल अरी ! चोरनी
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कंठ कभी कब होंठ सूखते
मति-मारी मद-मस्त हुआ
डग मग पग जब दिखे दूर से
पास खिंचा 'घट' तृप्त हुआ
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कंचन कामिनी कटि हिरणी सी 
नागिन ह्रदय पे लोट गयी
चकाचौंध अपलक बिजली सी
मंथन दिल अमृत -विष कुछ घोल गयी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
६-६.५७ मध्याह्न
कुल्लू हिमाचल प्रदेश भारत
७-मई -२०१५


दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले . .join hands to improve quality n gd work

Saturday, May 9, 2015

हंसमुख नैन तिहारे प्रियतम



हंसमुख नैन तिहारे प्रियतम  
क्या क्या रंग दिखाते हैं
नाच मयूरी सावन रिमझिम
घायल दिल कर जाते हैं
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हर इक आहट नजर थी रहती
प्यासे नैन थे पर फैलाये
पलक पांवड़े स्वागत खातिर
कब निकले तू नैन समाये
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कभी ओढ़नी होंठ दबाये पग ठुमकाये
कटि तक तू बल खाए
तिरछे नैन से बाण चलाये
अरी कभी तो बिना मुड़े चली जाए
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कभी देखने चाँद चांदनी
दिवस निशा छत पर तू आ जाये
कभी कैद बुलबुल सी पिजड़े
हिलता -पर्दा प्रिय री बहुत सताए
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कभी फूल पौधे कपड़ों  में
छवि तेरी बस जाये
रहूँ ताकता पहर-पहर भर
हो अवाक् मै, होठों गीत विरह धुन छाये
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भीड़  से छिपता नीरव निर्जन
काश कभी प्यारी मूरति वो आ ही जाए
गहरी सांस मै सपने उड़ता
तुझसे मन खूब बातें करता -
धरती पर गिर जाए
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चंचल शोख हसीना हे री !
तू गुलाब तू कमल कली रे
जनम -जनम का नाता तुझसे
'भ्रमर ' के तो  तू प्राण बसी रे
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आओ करें सुवासित जग को
'खुशबू' सुरभित ये जग फैलाएं
प्रेम-प्यार उपजे हर बगिया
सुख हो-खुशियाँ -
दिल अपने दिल में बस जाएँ
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कभी कसे गोदी बच्चों को
कन्धे माँ छुप कभी निहारे
बड़े रूप देखूं नित प्रियतम
तीर -मार घायल कर जाए
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बेकरार कर सखी री ना सताइये
पढ़ ले दिल की ये किताब लौट आइये
मदहोशी पगली बहकी यूं ना जाइए
दिल के आशियाने सुकूँ लौट आइये
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नैन झुकाये पास तो आती
चितए जब- हो जाती दूर
मै भी -तू - मुस्काती फिरती
पल-पल इतना चंदा मामा फिर भी दूर
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल
७ .०० पूर्वाह्न
७.५.२०१५



दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे
हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले

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