गाल गुलाब छिटकती
लाली
-----------------------------
जुल्फ झटक मौका
कुछ देती
अँखियाँ भरे निहार
सकूँ
कारी बदरी फिर ढंक
लेती
छुप-छुप जी भर
प्यार करूँ
=================
इन्द्रधनुष सतरंगी
सज-धज
त्रिभुवन मोहे अजब
मोहिनी
कनक समान सजे हर
रज कण
किरण गात तव अजब
फूटती
========================
गहरी झील नैन
भव-सागर
उतराये डूबे जन
मानस
ढाई आखर प्रेम की
गागर
अमृत सम पीता बस
चातक
-----------------------------
गाल गुलाब छिटकती
लाली
होंठ अप्सरा इंद्र
की प्याली
थिरक रिझा मतवारी
मोरनी
लूट चली दिल अरी !
चोरनी
====================
कंठ कभी कब होंठ
सूखते
मति-मारी मद-मस्त
हुआ
डग मग पग जब दिखे
दूर से
पास खिंचा 'घट'
तृप्त हुआ
====================
कंचन कामिनी कटि
हिरणी सी
नागिन ह्रदय पे
लोट गयी
चकाचौंध अपलक
बिजली सी
मंथन दिल अमृत
-विष कुछ घोल गयी
========================
सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल भ्रमर ५
६-६.५७ मध्याह्न
कुल्लू हिमाचल
प्रदेश भारत
७-मई -२०१५
दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले . .join hands to improve quality n gd work
2 comments:
bahut sundar ...
मिश्र जी रचना आप को पसंद आई और आप ने सराहा अच्छा लगा aabhar
bhramr 5
Post a Comment