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Saturday, March 26, 2011

आज राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी ...( photo from other sources , sabhar /with thanx)

होली - मुरली की हर तान सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम ..






मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी ...




बड़ा अजूबा लगता प्यारा -क्यों हारा -जसुदा मैया का दुलारा
सजा हुआ- हम तक ना पंहुचा -फंसा जाल में- क्यों ना हमें पुकारा
दही बड़ा पकवान मिठाई सूख  रहा ,गायों ने ना दूध दिया
अभी रहो चुप -पिचकारी ना दबे जरा -क्या देखे आँखें मूँद लिया
लचकन कैसी -२ कमर की देखो -हाथ में कैसी चूड़ी
पकड़ कलाई ली राधा की -देखो सीना जोरी
चलो गुइयाँ देखन को होरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

फाग खेलता लगे कबड्डी-रंगा  जमीं को सारा
कभी लिपटता आँखें मलता -राधा के संग अरे !! फिसलता जाता
श्याम रंग के बदरा विच -ज्यों -दामिनी दमके- दांत चमकता सारा
कमल खिला ज्यों इन्द्रधनुष- मुख मंडल शोभे- चमके आँख का तारा
 देख करे क्या 2 -आज पकड़ेंगे -हम भी चोरी  
नशा चढ़ा क्या -२- बैठे ताके -भौंरा जैसे गुपचुप झांके
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

शर्म हया क्या बेंचा उसने -खुले अंग हैं फटे वस्त्र  - या समझ न पाए
मदमाती यौवन से जैसे कली फूटती देखे दुनिया संभल न पाए
मैया गैया गाँव भुलाये- इत उत चितए- कान्हा -को भी याद न आये
लट्ठ उठाये भी राधा के- गले वो लगता -ढोल मजीरा हाँथो से क्या ताल बजाये
देख मजा -२ लेंगे हम सखियाँ -खेलेंगे न होली -
छुप जा देखो चली आ रही ग्वाल बाल की टोली
संभलती  ना -अब भी ये छोरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी


धड़कन मन की बढती जाती मन व्याकुल है -रंग हाँथ से गिर न जाये
खेल देख अब -चढ़े नशा कुछ -जोश चढ़े अब छुपा कहाँ न मिलता हाय 
चलो रगड़ें अब रंग गुलाल -दिलाएं याद -भले हो ‘कुछ को आज मलाल 
चूम लें -लिख दें -मन की हाल -गुलाबी होंठों से दें छाप 
रात भर खेलेंगे-२ हम फाग -खोलकर दिल नाचेंगे आज
भुला सकेगा ना कान्हा रे -मथुरा की ये होली
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी
मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी


सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर5
होली में आप सब के बीच न रह पाने के दिल के मलाल को निकलने हेतु ...... 
आओ एक फाग तो गा ही लें झूम के 




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Sunday, March 6, 2011

सांस छोड़ दो -पेट पचा लो कमर से चिपकी –बाबा भ्रमर-देव बन जाना



मन में आता
छोड़ -'नवु-करी
मै बाबा -बन जाऊं
दुनिया भर के चेले -'चापर"
लेकर योग सिखाऊँ
बाबा "भ्रमरदेव" बन जाऊं
'पुरुष' बनो -
नारी से तुम भी
सांस छोड़ दो
पेट पचा लो -
कमर से चिपकी
बन हीरो-इन -हीरो नाचो
फीस भरो आ- 
नाम लिखा लो 
देश -विदेश जहाँ भी जाओ 
बाबा संग तुम -  नाम कमाओ 
"पेट नहीं"- पिचका- दिखलाओ 
'वो' जब  जाने -तुम ना खाते
"पिचकी" -पिचकारी
रंग भरें 'वो' -फूल -फूल
तुम मेरे जैसा
गुब्बारा बन -उड़ते रहना
आसमान में !!
आँख -पलक झपकाते रहना
डरना-ना
"वो" ना -समझें -
आँख-मिला-ना
सम्मोहित कर
सब अपना-ना
बाबा 'भ्रमरदेव' के संग-
संग -प्यारे
देश का अपने
नाम डुबा-ना .
आँखे बंद करा के तेरी
कंसंट्रेट सिखाऊँ
भरमाऊँ
झोली अपनी भर के लाऊं

जब धन होगा -तो मन होगा
होश -  जोश जागेगा
विश्व -गुरु हम- बन जाए-
कल देश हमारा -
हाँ या ना-ना ????
चिल्लाओ कुछ -
 ताली पीटो- 
मूक बनो -ना 
कल - देखना
वादा अपना सपना- अपना
हम ना गिरगिट
रंग न बदलें

सन्यासी हैं
वनवासी हैं
वन में जितने भी राक्षस हैं 
दमन करूँगा -
'इन ' जादूगर काले -वालों
से भैया मै
तभी - भिडूंगा
इसी अखाड़े
"नाग-पंचमी' के दिन
सब मिल- डंडा लाना
आना- हमको साहस देना
जोश”- जगाना
देख -पटखनी
खुश हो - जाना


शुक्लाभ्रमर५
५.३.२०११ जल पी बी

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Saturday, March 5, 2011

"जज" को तनिक भी - दया न आई,-shuklabhramar5-kavita-hindi poems

 "जज" को तनिक भी - दया न आई,
सुबह सुबह
भिनसार-उठना
आपस में चाँव -चाँव
समूह बनाये -यहाँ -वहां
मैदान में चहकना
रोना-जब काम न आया
एक "मंच" बनाया
'महासभा" पंचायत
सबको जगाया
न्योता दे बुलाया
दुःख दर्द कहने
उसको जकड़ने
"समूह" में शक्ति दिखाने
आवाज बुलंद करने
"वो" चिड़िया -उडी
मंच पे चढ़ी
ललकारा -फटकारा
ले लिया नाम -कितनो का
जो थे बदनाम
"जज" ने पुचकारा
धीमे से प्यारे से लहजे में
'शेर' सुनाया
मांग लिया ढेर सारा
सबूत -गवाही
जिसने की थी तवाही
चिड़िया रोई चूं चूं
चिल्लाई-पगलाई 
जज को तनिक भी -
दया न आई
ऑर्डर -ऑर्डर -सबूत -सबूत
अड़ा हुआ -हथौड़ा   मारता रहा  

हाँ है -सबूत -मै जली हूँ  
दिन रात उडी हूँ
-तिनके-तिनके -
बीन-बीन लायी हूँ
घोंसले में जुटाई हूँ

सुनते ही -एक
'ताकतवर' - 'बाज' उड़ा
आसमान चढ़ा -सबको धता-बता
ओझल हुआ
फिर आग की लपटें
चूं चूं चूं चूं दबी चीख
एक "घोंसला" फिर जला
जिसमे उस चिड़िया के -
अंडे -बच्चे थे -निगरानी में
"सबूत के "

बलिदानी -फडफडाई
हार न मानी -गुहार लगायी
चिल्लाई अब तो
लाखों ने देखा
"गवाही"   उसकी  तवाही
वो "फंसा"
पर मंच पर गवाही
देने कोई न चढ़ा
सबको याद आई
लपटें ज्वाला
घोंसला -
उनमे पलते -
अपने अंडे बच्चे
"जज" को सांप सूंघ गया
एक "गीध" जटायु सा
जिसका पंख कटा
राम -राम करते
रो पड़ा -इतिहास
के पन्ने-खड़बड़ाते  
उड़ते आंधी में
बिखर गए
भीड़ तितर-बितर
हो गयी .

शुक्लाभ्रमर५
५.३.२०११ जल पी बी




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Tuesday, March 1, 2011

'पेट' में 'इनके' -'अपने' सारा "गंगाजल" भर लाऊं-shuklabhramar-Kavita-Hindi poems

 'पेट' में 'इनके' -'अपने' सारा "गंगाजल" भर लाऊं
बजट आ गया 
लोक-लुभावन-हर-मनभावन??
जेब  हुयी कुछ भारी
बीबी  बोली  भर ले पैसे 
लायें  मन  की साड़ी
मै बोला  स्टील खरीदूं 
साबुन से चमकाऊँ
गहनों कपड़ो की दुकान में
इसको चलो सजाऊँ 
कुछ बेंचू -फिर खाऊँ
बीबी बोली -चुप कर पगले  
किचेन हमारा वही पुराना 
मंहगाई - न-जीवन बदले
सोने -गहने सब तो मंहगे
नारी का आभूषण
नेता -नेती सारे दुश्मन
लगते -अब- खर-दूषण
छूट मिली रे -टैक्स पे पगली
एक साठ -से अब है अस्सी
टिकुली -बिंदी लाऊं
कुछ कपडे -पहनाऊँ
उस पैसे से बिउटी- पार्लर
चल तुझको चमकाऊँ
एक लाख का मुंह न देखा 
उमर हो गयी पचपन 
अभी भी लाते सत्तर -अस्सी
'पी'-खा जाते 'भुक्की' ???
टिकट हुयी ना मंहगी जानू 
चारों- धाम घुमाऊँ चल-ना
चल-ना बच्चों को भी लेकर 
"पेट" में उनके -अपने सारा
"गंगा-जल" भर लाऊं.
प्राइमरी से नर्सरी में
इनका नाम लिखाऊँ
धूल से  देखो फूल खिलेगा
"वीजा" बाद बनाऊं
तुझको ले फिर -उड़ पाऊंगा
सागर के उस पार.
अमरीका-लन्दन क्या सपना??
कल बूढ़े -घिसते -  ना मरना
यहीं रहे -   दो रोटी खाए
छू पाऊँ मै कन्धा -दे दे
इतनी भर बस आस.
कर्ज लिए हम पैदा होते
'तैंतीस' -  कहें  -  'हजार'
'कर्ज' लिए ही मर जाते हैं
क्या तेरी सरकार !!!!!
'तीन सौ लाख करोड़' है आना
काला धन -   गोरा करना है
पम्प लगे -पक्का घर होगा
चढ़ी "पजेरो" आना द्वार ....
बजट बनाते फिर वो बैठी
रोटी -सूखी-नमक-अचार
खेती -खाद -नहीं -गुड़ -गोबर  
रोती रात -हुआ भिनसार

'ड्रेस'' -'इग्जाम' के पैसे थे कम
बेटी रही कुवांरी- बैठी..
फाड़ फेंक के -पेपर फेंकी
"चंद्रमुखी"   हो   काली- पीली  .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
१.०३.२०११ 
जल पी.बी. 




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