पुलकित गात बहे पुरवैया
आँचर उडि समझावत जी को
कागा बोली गयो अंगनैया
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कजरा सोखि लियो अंसुवन को !!
कर सोलह श्रृंगार सखी री
दर्पण हंसी उक्सावत जी को
लोभी -भ्रमर -प्रसून सजा री
लव मदिरा छलकावत नीको !!
अंग सिहर जाते हर आहट
धक् -धक् दिल भरता कड़वाहट
अब विलम्ब ना लागत नीको !!
ननद दौडि नाची अंगनैया
छतिया भरि मै चूमी उसी को -
जल - सन्देश भिजायो भैया
नैन वाण से घायल पी को !!
सूरज अम्बर सेज पुकारे
जाहु प्रिया के प्राण बसैया
रजनी ना अब -सागर-लागे
आइ गए अब नाव खेवैया !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१.५.२०११
लेखन हजारीबाग २१.९.१९९७ रविवार
८.३० मध्याह्न
Dadi Maa sapne naa mujhko sach ki tu taveej bandha de..hansti rah tu Dadi Amma aanchal sir par mere daale ..join hands to improve quality n gd work