RAS RANG BHRAMAR KA
RAS RANG BHRAMAR KA
Saturday, March 19, 2022
सरयू तट राम खेलें होली सरयू तट
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: सरयू तट राम खेलें होली सरयू तट: सरयू तट राम खेलें होरी सरयू तट सिया राम की है अनुपम जोड़ी, सरयू तट कनक भवन में रंग है बरसे मात पिता परिजन हिय हुलसे.. सरयू तट सजे बजे प्रभु ...
Thursday, March 17, 2022
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: डूब रही मैं हर नैनन में , श्याम तो बहुत सतावें
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: डूब रही मैं हर नैनन में , श्याम तो बहुत सतावें: जित देखूं तित राधा दिखती पाछे दौड़त श्याम रंग गुलाल में सराबोर है छवि नैना अभिराम हम सब को सम्मोहन से मन मोहन जरा बचा ले.. हर मीरा से श्याम...
Wednesday, March 16, 2022
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: मादक सी गंध है होली के रंग लिए
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: मादक सी गंध है होली के रंग लिए: गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन --------------------- आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के बौराया मेरा निश्च्छल मन फूटा अंकुर कोंपल फूटी टूटे तारों...
Monday, June 26, 2017
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !
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छोटे छोटे झूम झूम कर
खेल खेल मन हर लेते
बिन बोले भी पलक नैन में
दिल में ये घर कर लेते !
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प्रेम छलकता इनसे पल-पल
दर्द थकन हर-हर लेते
अपनी भाव भंगिमा बदले
चंद्र-कला सृज हंस देते !
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खिल-खिल खिलते हँसते -रोते
रोते-हँसते मृदुल गात ले
विश्व रूप ज्यों मुख कान्हा के
जीवन धन्य ये कर देते
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इनके नैनों में जादू है
प्यार भरे अमृत घट से हैं
लगता जैसे लक्ष्मी -माया
धन -कुबेर ईश्वर मुठ्ठी हैं
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कभी न ऊबे मन इनके संग
घंटों खेलो बात करो
अपनापन भरता हर अंग -अंग
प्रेम श्रेष्ठ जग मान रखो
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कभी प्रेम से कोई लेता
इन पौधों को अपने पास
ले जाता जब दूर देश में
व्याकुल मन -न पाता पास !
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छलक उठे आंसू तब मेरे
विरह व्यथा कुछ टीस उठे
सपने मेरे जैसे उसके
ज्ञान चक्षु खुल मीत बनें
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फिर हँसता बढ़ता जाता मै
कर्मक्षेत्र पगडण्डी में
खेल-खेल मै खेल रहा हूँ
नन्ही अपनी क्यारी में
सुन्दर सी फुलवारी में !
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्र्मर ५
शिमला हिमाचल प्रदेश
२.३० - ३.०५ मध्याह्न
९ जून १७ शुक्रवार
सौ -सौ रूप धरे ये बादल
please be united and contribute for society ....Bhramar5
दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे
हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले .
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Saturday, June 4, 2016
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं जब से उसने मुझको देखा ...
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
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कोमल गात हमारे सिहरन
छुई मुई सा होता तन मन
उन नयनों की भाषा उलझन
उचटी नींदें निशि दिन चिंतन
मूँदूँ नैना चित उस चितवन ....
खुद बतियाती गाती हूँ मैं ....
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
होंठ रसीले मधु छलकाते
अमृत घट ज्यों -भौंरे आते
ग्रीवा-गिरि-कटि-नाभि उतर के
बूँद-सरोवर-झील नहाते
मस्त मदन रति क्रीड़ा देखे ……..
छक मदिरा पी लड़खड़ा उठूँ मैं………
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
काया कंचन चाँद सा मुखड़ा
प्रेम सरोवर हंस वो उजला
अठखेली कर मोती चुगता
लहर लहर बुनता दिल सुनता
बात बनी रे ! रात पूर्णिमा ...
ज्वार सरीखी चढ़ जाऊं मैं ...
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
लहर लहर लहरा जाऊं मैं
भटकी-खोती-पा जाऊं मैं
चूम-चूम उड़ छा जाऊं मैं
बदली-कितनी-शरमाऊं मैं
बांह पसारे आलिंगन कर ...
दर्पण देख लजा जाऊं मैं ...
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
अब पराग रस छलक उठा है
पोर-पोर हर महक उठा है
कस्तूरी मृग जान चुका है
दस्तक दिल पहचान चुका है
नैनों की भाषा पढ़ पढ़ के ...
जी भर अब मुस्काऊँ मैं
खिली खिली खिलखिला उठूँ मैं
जब से उसने मुझको देखा ...
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
११.३० -१२.१० मध्याह्न
२.६.२०१६
कुल्लू हिमाचल भारत
दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले . .join hands to improve quality n gd work
Monday, June 8, 2015
गाल गुलाब छिटकती लाली
गाल गुलाब छिटकती
लाली
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जुल्फ झटक मौका
कुछ देती
अँखियाँ भरे निहार
सकूँ
कारी बदरी फिर ढंक
लेती
छुप-छुप जी भर
प्यार करूँ
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इन्द्रधनुष सतरंगी
सज-धज
त्रिभुवन मोहे अजब
मोहिनी
कनक समान सजे हर
रज कण
किरण गात तव अजब
फूटती
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गहरी झील नैन
भव-सागर
उतराये डूबे जन
मानस
ढाई आखर प्रेम की
गागर
अमृत सम पीता बस
चातक
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गाल गुलाब छिटकती
लाली
होंठ अप्सरा इंद्र
की प्याली
थिरक रिझा मतवारी
मोरनी
लूट चली दिल अरी !
चोरनी
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कंठ कभी कब होंठ
सूखते
मति-मारी मद-मस्त
हुआ
डग मग पग जब दिखे
दूर से
पास खिंचा 'घट'
तृप्त हुआ
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कंचन कामिनी कटि
हिरणी सी
नागिन ह्रदय पे
लोट गयी
चकाचौंध अपलक
बिजली सी
मंथन दिल अमृत
-विष कुछ घोल गयी
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सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल भ्रमर ५
६-६.५७ मध्याह्न
कुल्लू हिमाचल
प्रदेश भारत
७-मई -२०१५
दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले . .join hands to improve quality n gd work
Saturday, May 9, 2015
हंसमुख नैन तिहारे प्रियतम
हंसमुख नैन
तिहारे
प्रियतम
क्या क्या
रंग
दिखाते
हैं
नाच मयूरी
सावन
रिमझिम
घायल दिल
कर
जाते
हैं
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हर
इक आहट नजर थी रहती
प्यासे
नैन थे पर फैलाये
पलक
पांवड़े स्वागत खातिर
कब
निकले तू नैन समाये
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कभी
ओढ़नी होंठ दबाये पग ठुमकाये
कटि
तक तू बल खाए
तिरछे
नैन से बाण चलाये
अरी
कभी तो बिना मुड़े चली जाए
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कभी
देखने चाँद चांदनी
दिवस
निशा छत पर तू आ जाये
कभी
कैद बुलबुल सी पिजड़े
हिलता
-पर्दा प्रिय री बहुत सताए
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कभी
फूल पौधे कपड़ों में
छवि
तेरी बस जाये
रहूँ
ताकता पहर-पहर भर
हो
अवाक् मै, होठों गीत विरह धुन छाये
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भीड़ से छिपता नीरव निर्जन
काश
कभी प्यारी मूरति वो आ ही जाए
गहरी
सांस मै सपने उड़ता
तुझसे
मन खूब बातें करता -
धरती
पर गिर जाए
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चंचल
शोख हसीना हे री !
तू
गुलाब तू कमल कली रे
जनम
-जनम का नाता तुझसे
'भ्रमर
' के तो तू प्राण बसी रे
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आओ
करें सुवासित जग को
'खुशबू'
सुरभित ये जग फैलाएं
प्रेम-प्यार
उपजे हर बगिया
सुख
हो-खुशियाँ -
दिल
अपने दिल में बस जाएँ
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कभी
कसे गोदी बच्चों को
कन्धे
माँ छुप कभी निहारे
बड़े
रूप देखूं नित प्रियतम
तीर
-मार घायल कर जाए
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बेकरार
कर सखी री ना सताइये
पढ़
ले दिल की ये किताब लौट आइये
मदहोशी
पगली बहकी यूं ना जाइए
दिल
के आशियाने सुकूँ लौट आइये
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नैन
झुकाये पास तो आती
चितए
जब- हो जाती दूर
मै
भी -तू - मुस्काती फिरती
पल-पल
इतना चंदा मामा फिर भी दूर
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सुरेन्द्र
कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू
हिमाचल
७
.०० पूर्वाह्न
७.५.२०१५
दादी माँ सपने ना मुझको सच की तू तावीज बंधा दे
हंसती रह तू दादी अम्मा आँचल सर पर मेरे डाले
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