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Sunday, July 24, 2011

आँख से छलके हुए आंसू- (बेवफाई )


आँख से छलके हुए आंसू से 
भीगा-मै था 
उस झील की गहराई में कुछ 
दूर तक उतरा ही था 
जल परी -ख्वाब के महलों में 
रसातल जाऊं 
जम गए बूँद -बिंदु-झील 
बस डूबा जाऊं 
पानी पत्थर भी जम के हो जाते 
चाहता रह गया -
दुनिया को कैसे बतलाऊँ !!

शुक्ल भ्रमर ५ 
जल पी बी १८.७.११ - ८.१०  -मध्याह्न  



Dadi Maa sapne naa mujhko sach ki tu taveej bandha de..hansti rah tu Dadi Amma aanchal sir par mere daale ..join hands to improve quality n gd work

Saturday, July 9, 2011

सच तो शिव है -शिव ही करता नाग सरीखा संग-संग रहता

सच एक हंस है 
पानी दूध को अलग किये ये 
मोती खाता -मान-सरोवर डटा  हुआ है 
धवल चाँद है 
अंधियारे को दूर भगाता
घोर अमावस -अंधियारे में 
महिमा अपनी रहे बताता 
ये तो भाई पूर्ण पड़ा है !
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सच-सूरज है अडिग टिका है 
लाख कुहासा या अँधियारा 
चीर फाड़ हर बाधाओं को 
रोशन करने जग आ जाता 
प्राण फूंक हर जड़-जंगम में 
नव सृष्टि ये  रचता जाता 
सुबह सवेरे पूजा जाता !!
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सच- आत्मा है - परमात्मा है 
कभी मिटे ना लाख मिटाए 
चाहे आंधी तूफाँ  आये 
चले सुनामी सभी बहाए 
दर्द कहीं है लाश बिछी है 
भूखा कोई रोता जाये 
कहीं लूट है - घर भरते कुछ 
सच - दर्पण है सभी दिखाए !!
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सच तो शिव है -शिव ही करता 
नाग सरीखा संग-संग रहता 
जिसके पास ये आभूषण हैं 
ब्रह्म -अस्त्र ये- ताकत उसमे 
पापी उसके पास न आयें 
राहू-केतु से झूठे राक्षस 
झूठें ही बस दौड़ डराएँ 
खाने धाये !!
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सच इक आग है - शोला है ये 
धधक रहा है चमक रहा है 
उद्भव -पूजा हवन यज्ञं में 
आहुति को ये गले लगाये 
प्राणों को महकाता जाए 
श्री गणेश -पावन कर जाये 
भीषण ज्वाला - कभी नहीं जो बुझने वाला 
लंका को ये जला जला कर 
झूठी सत्ता- झूठ- जलाकर 
अहम् का पुतला दहन किये है 
सब कुछ भस्म राख कर देता 
गंगा को सब किये समर्पित 
मूड़ मुड़ाये सन्यासी सा 
बिना सहारा-डटा खड़ा है !!
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सच ये कोई नदी नहीं है 
जब चाहो तुम बाँध बना लो 
ये अथाह है- सागर- है ये 
गोता ला बस मोती ढूंढो 
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सच ये भाई ना घर तेरा 
जाति नहीं- ना धर्म है तेरा 
जब चाहो भाई से लड़ -लड़ 
ऊँची तुम दीवार बना लो 
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सच पंछी है मुक्त फिरे है 
आसमान में -वन में -सर में 
एकाकी -निर्जन-जीवन में 
सच की महिमा के गुण गाये 
कलरव करते विचरे जाए !!
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सच कोमल है फूल सरीखा 
रंग बिरंगा हमें लुभाए 
चुभते कांटे दर्द सहे पर 
हँसता और हंसाता जाये 
जीवन को महकाता  जाये 
अमर बनाये !!
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सच कठोर है -ये मूरति है 
सच्चाई का  दामन थामे 
पूजे मन से जो -सुख जाने 
यही शिला है यही हथौड़ा 
मार-मार मूरति गढ़ता है 
सुन्दर सच को आँक आँक कर 
सच्चाई सब हमें दिखाता
आँखें फिर भी देख न पायें 
या बदहवास जो सब झूंठलायें  
ये पहाड़ फिर गिर कर भाई 
चूर चूर सब कुछ कर जाए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
७.७.२०११ ६.२६ पूर्वाह्न जल पी बी 



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