चेहरा मेरा सुर्ख हुआ था
पलकें बंद हुयी थी पल में
मुह से सिहरन -
सिसकी -अद्भुत
हलकी सी एक
निकल गयी थी !
धड़कन मेरी तेज हुयी थी
सांसे भी कुछ
वक्ष फूलकर -पिचक रहा था
वो सावन की
झड़ी सुहानी
शीतलता -कमजोर-हुयी थी
-बदन आग-
सा तप्त हुआ था
आतुर मन था
खींच रहा भूमिका बनाये
मै बारिश में -उमड़ी
नदिया जैसे
सागर में यूं खो जाने को
दौड़ पड़ी थी !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रम्र५
१८.०४.२०११
kal fir aayenge aur koi kachchi kaliyan chunne vaale..ham sa behtar kahne vaale tum sa behtar sunne vale-Bhrmar ..join hands to improve quality n gd work