चेहरा मेरा सुर्ख हुआ था
पलकें बंद हुयी थी पल में
मुह से सिहरन -
सिसकी -अद्भुत
हलकी सी एक
निकल गयी थी !
धड़कन मेरी तेज हुयी थी
सांसे भी कुछ
वक्ष फूलकर -पिचक रहा था
वो सावन की
झड़ी सुहानी
शीतलता -कमजोर-हुयी थी
-बदन आग-
सा तप्त हुआ था
आतुर मन था
खींच रहा भूमिका बनाये
मै बारिश में -उमड़ी
नदिया जैसे
सागर में यूं खो जाने को
दौड़ पड़ी थी !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रम्र५
१८.०४.२०११
kal fir aayenge aur koi kachchi kaliyan chunne vaale..ham sa behtar kahne vaale tum sa behtar sunne vale-Bhrmar ..join hands to improve quality n gd work
6 comments:
बहुत सुंदर...
महेंद्र मिश्र जी धन्यवाद आप ने इस रचना की खूबसूरती में खो आनंद लिया हर्ष हुआ
भ्रमर५
वाह...
जीवन के महत्वपूर्ण पलों का अद्भुत वर्णन. आभार...
आदरणीय सुशील बाकलीवाल जी अभिनन्दन है आप का यहाँ ,बहुत ही त्वरित प्रतिक्रिया , तभी तो हम सब आप के चेले बन जाते हैं -खूबसूरती का आनंद और जीवन के महत्वपूर्ण क्षण बता आप ने इस का मान बढ़ा दिया- हम आप से सुझाव व् समर्थन की भी उम्मीद लगाये हैं
धन्यवाद
:-)
मैं बारिश में उमड़ी नदिया जैसे...
बेहद सजीव चित्रण.
प्रिय राजीव जी हार्दिक अभिनन्दन आप का -आप को रचना अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ -हाँ सचमुच बहुत ही मोहक क्षण का वर्णन है इसमें
अपना सुझाव व् समर्थन भी दें
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