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Tuesday, March 1, 2011

'पेट' में 'इनके' -'अपने' सारा "गंगाजल" भर लाऊं-shuklabhramar-Kavita-Hindi poems

 'पेट' में 'इनके' -'अपने' सारा "गंगाजल" भर लाऊं
बजट आ गया 
लोक-लुभावन-हर-मनभावन??
जेब  हुयी कुछ भारी
बीबी  बोली  भर ले पैसे 
लायें  मन  की साड़ी
मै बोला  स्टील खरीदूं 
साबुन से चमकाऊँ
गहनों कपड़ो की दुकान में
इसको चलो सजाऊँ 
कुछ बेंचू -फिर खाऊँ
बीबी बोली -चुप कर पगले  
किचेन हमारा वही पुराना 
मंहगाई - न-जीवन बदले
सोने -गहने सब तो मंहगे
नारी का आभूषण
नेता -नेती सारे दुश्मन
लगते -अब- खर-दूषण
छूट मिली रे -टैक्स पे पगली
एक साठ -से अब है अस्सी
टिकुली -बिंदी लाऊं
कुछ कपडे -पहनाऊँ
उस पैसे से बिउटी- पार्लर
चल तुझको चमकाऊँ
एक लाख का मुंह न देखा 
उमर हो गयी पचपन 
अभी भी लाते सत्तर -अस्सी
'पी'-खा जाते 'भुक्की' ???
टिकट हुयी ना मंहगी जानू 
चारों- धाम घुमाऊँ चल-ना
चल-ना बच्चों को भी लेकर 
"पेट" में उनके -अपने सारा
"गंगा-जल" भर लाऊं.
प्राइमरी से नर्सरी में
इनका नाम लिखाऊँ
धूल से  देखो फूल खिलेगा
"वीजा" बाद बनाऊं
तुझको ले फिर -उड़ पाऊंगा
सागर के उस पार.
अमरीका-लन्दन क्या सपना??
कल बूढ़े -घिसते -  ना मरना
यहीं रहे -   दो रोटी खाए
छू पाऊँ मै कन्धा -दे दे
इतनी भर बस आस.
कर्ज लिए हम पैदा होते
'तैंतीस' -  कहें  -  'हजार'
'कर्ज' लिए ही मर जाते हैं
क्या तेरी सरकार !!!!!
'तीन सौ लाख करोड़' है आना
काला धन -   गोरा करना है
पम्प लगे -पक्का घर होगा
चढ़ी "पजेरो" आना द्वार ....
बजट बनाते फिर वो बैठी
रोटी -सूखी-नमक-अचार
खेती -खाद -नहीं -गुड़ -गोबर  
रोती रात -हुआ भिनसार

'ड्रेस'' -'इग्जाम' के पैसे थे कम
बेटी रही कुवांरी- बैठी..
फाड़ फेंक के -पेपर फेंकी
"चंद्रमुखी"   हो   काली- पीली  .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
१.०३.२०११ 
जल पी.बी. 




kal fir aayenge aur koi kachchi kaliyan chunne vaale..ham sa behtar kahne vaale tum sa behtar sunne vale-Bhrmar ..join hands to improve quality n gd work

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