'पेट' में 'इनके' -'अपने' सारा "गंगाजल" भर लाऊं
बजट आ गया
लोक-लुभावन-हर-मनभावन??
जेब हुयी कुछ भारी
बीबी बोली भर ले पैसे
लायें मन की साड़ी
मै बोला स्टील खरीदूं
साबुन से चमकाऊँ
गहनों कपड़ो की दुकान में
इसको चलो सजाऊँ
कुछ बेंचू -फिर खाऊँ
बीबी बोली -चुप कर पगले
किचेन हमारा वही पुराना
मंहगाई - न-जीवन बदले
सोने -गहने सब तो मंहगे
नारी का आभूषण
नेता -नेती सारे दुश्मन
लगते -अब- खर-दूषण
छूट मिली रे -टैक्स पे पगली
एक साठ -से अब है अस्सी
टिकुली -बिंदी लाऊं
कुछ कपडे -पहनाऊँ
उस पैसे से बिउटी- पार्लर
चल तुझको चमकाऊँ
एक लाख का मुंह न देखा
उमर हो गयी पचपन
अभी भी लाते सत्तर -अस्सी
'पी'-खा जाते 'भुक्की' ???
टिकट हुयी ना मंहगी जानू
चारों- धाम घुमाऊँ चल-ना
चल-ना बच्चों को भी लेकर
"पेट" में उनके -अपने सारा
"गंगा-जल" भर लाऊं.
प्राइमरी से नर्सरी में
इनका नाम लिखाऊँ
धूल से देखो फूल खिलेगा
"वीजा" बाद बनाऊं
तुझको ले फिर -उड़ पाऊंगा
सागर के उस पार.
अमरीका-लन्दन क्या सपना??
कल बूढ़े -घिसते - ना मरना
यहीं रहे - दो रोटी खाए
छू पाऊँ मै कन्धा -दे दे
इतनी भर बस आस.
कर्ज लिए हम पैदा होते
'तैंतीस' - कहें - 'हजार'
'कर्ज' लिए ही मर जाते हैं
क्या तेरी सरकार !!!!!
'तीन सौ लाख करोड़' है आना
काला धन - गोरा करना है
पम्प लगे -पक्का घर होगा
चढ़ी "पजेरो" आना द्वार ....
बजट बनाते फिर वो बैठी
रोटी -सूखी-नमक-अचार
खेती -खाद -नहीं -गुड़ -गोबर
रोती रात -हुआ भिनसार
'ड्रेस'' -'इग्जाम' के पैसे थे कम
बेटी रही कुवांरी- बैठी..
फाड़ फेंक के -पेपर फेंकी
"चंद्रमुखी" हो काली- पीली .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
१.०३.२०११
जल पी.बी.
kal fir aayenge aur koi kachchi kaliyan chunne vaale..ham sa behtar kahne vaale tum sa behtar sunne vale-Bhrmar ..join hands to improve quality n gd work
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